सर्व विदित है कि हिमाचल की सराज घाटी देवी देवताओं की छत्रछाया में समृद्ध हुई है , इस बात से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है। सराज के जंजैहली क्षेत्र का नाम इस संदर्भ में सबसे ऊपर आता है । जंजैहली में कई देवी. देवता निवास करते हैं जिनमें से अधिकतर लोग माता शिकारी को मुख्य रूप से जानते हैं । यहां गर्मियों में आए दिन हिमाचल ही नहीं, पूरे भारतवर्ष के अलावा विदेशों से भी श्रद्धालु दर्शन करने आते है , मगर आज आपको भगवान शंकर का अदभुत चमत्कार दिखाते हैं जिन्हें शंकरी के नाम से जाना जाता है । इस किंवदंती के बारे में दलीप ठाकुर ने बताया कि उनके पूर्वज शंकर देहरा (करसोग ) गए थे । वहां उन्हें एक छोटा सा पत्थर दिखाई दिया । मन में सोचा कि इसे में घर ले चलता हूं । चटनी पीसने के काम आएगा काफी चलने के बाद वह अपने जंगल में बने घर के पास पहुंच गए । यह सोचकर कि कल इस पत्थर को लिए यहां से दूसरे घर ले जाऊंगा और उस पत्थर को इस विचार से वहीं पर रख दिया । दूसरे दिन जब वह इस पत्थर को लेने आए तो वह अपने स्थान से नहीं हिल रहा था । कई दिन प्रयास किया लेकिन वह पत्थर हिला नहीं । उन्होंने उस पत्थर को उठाने का इरादा ही छोड़ दिया । काफी समय बीता उनकी गाय हर रोज एक कुछ पत्थर की तरफ जाती और वह दूध देकर वापस लौट जाती । घरवालों ने सोचा कि आखिर यह दूध इतना कम क्यों दे रही है । एक दिन वहां उनके पूर्वज आए और देखा तो इस पत्थर पर यह अपने आप दूध दे रही थी। जैसा कि कई जगह होता है । कुछ दिनों के बाद यह पत्थर जो है बढऩे लगा वह एक फू ट से करीब 3 फुट का हो गया । लोग आश्चर्यचकित थे । उस आदमी को जो यह पत्थर लाया था स्वप्न आया कि मैं भगवान शंकर हूं । यहां मेरा एक मंदिर बनाया जाए फिर उसने लोगों को इकट्ठा किया, पूजा अर्चना की तो सब ने उन्हें भगवान मानकर वहां एक मंदिर बना दिया और कुछ दिनों के बाद उन्होंने फिर देखा कि वह शिवलिंग जो है बढ़ता ही जा रहा है । लोगों की आस्था और भी बढ़ गई काफी पूजा अर्चना करते रहे और समय के साथ साथ आज यह शिव पिंडी करीब 10 से 15 फुट की हो गई है । पहले इन पर दूध चढ़ाने ऐसे खड़े होकर चढ़ा सकते थे । लेकिन आज यहां सीढ़ी लगाकर दूध चढ़ाना पड़ता है यह हमारे लिए एक हर्ष का विषय है कि हमारे सराज में कितनी है अलौकिक विभूतियां समाहित है
ऐसे पहुंचते है शंकरी के पास
यह स्थान जंजैहली से 3 किलोमीटर पीछे मंडी की तरफ को है । पांडव शिला नामक स्थान करीब 4 किलोमीटर पैदल रास्ता है । रुशआड़ गांव तक वाहन जाता है । उसके बाद तीन किलोमीटर पैदल चलने के बाद जंगल विशाल शंकरी शिव पिंडी के दर्शन होते है । हांलाकि इसे आस्था भाव से ही पूजनीय माना गया है । जबकि वहां पर किसी की तरह खोज या तहकीकात पर प्रतिबंध है।