हिमाचल प्रदेश अपनी समृद्ध संस्कृति, विभिन्न मेले, उत्सव और त्यौहारों के लिए प्रसिद्ध है। ये सारे त्यौहार जहां हम सबको हमारे अपनों से जोड़े रखने का काम करते हैं, वहीं हिमाचल के लोगों के लिए एक रोजगार का भी साधन हैं। इस क्रम में सैर या सायर उत्सव का भी लोगों में बड़ा महत्त्व है। 16 सितम्बर यानी अश्विन महीने की सक्रांति को काँगड़ा ,मण्डी ,हमीरपुर ,बिलासपुर और सोलन सहित अन्य कुछ जिलो में सैर या सायर का त्यौहार काफी धूमधाम से मनाया जाता है।
वास्तव में यह त्यौहार वर्षा ऋतु के खत्म होने और शरद् ऋतु के आगाज के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस समय खरीफ की फसलें पक जाती हैं और काटने का समय होता है, ऐसे में भगवान को धन्यवाद करने के लिए यह त्यौहार मनाते हैं। सैर के बाद ही खरीफ की फसलों की कटाई की जाती है। इस दिन “सैरी माता” को फसलों का अंश और मौसमी फल चढाए जाते हैं और साथ ही राखियाँ भी उतार कर सैरी माता को चढ़ाई जाती हैं। ठंडे इलाकों में इसे सर्दी की शुरूआत माना जाता है और सर्दी की तैयारी शुरू हो जाती है। लोग सर्दियों के लिए अनाज और लकड़ियाँ जमा करके रख लेते हैं। सैर आते ही बहुत से त्यौहारों का आगाज़ हो जाता है। सैर के बाद दिवाली तक विभिन्न व्रत और त्यौहार मनाए जाते हैं।
इस उत्सव को मनाने के पीछे एक धारणा यह भी है कि प्राचीन समय में बरसात के मौसम में लोग दवाईयां उपलब्ध न होने के कारण कई बीमारियों व प्राकृतिक आपदाओं का शिकार हो जाते थे तथा जो लोग बच जाते थे वे अपने आप को भाग्यशाली समझते थे तथा बरसात के बाद पड़ने वाले इस उत्सव को ख़ुशी ख़ुशी मनाते थे। तब से लेकर आज तक इस उत्सव को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। सायर का पर्व अनाज पूजा और बैलों की खरीद के लिए मशहूर है। कृषि से जुड़ा यह पर्व ग्रामीण क्षेत्रों में ही नहीं, बल्कि शहरों में भी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। बरसात के मौसम के बाद खेतों में फसलों के पकने और सर्दियों के लिए चारे की व्यवस्था किसान और पशु पालक सायर के त्योहार के बाद ही करते हैं।
सायर का त्योहार बरसात की समाप्ति का भी सूचक माना जाता है। इस दिन भादों महीने का अंत होता है। भादों महीने के दौरान देवी-देवता डायनों से युद्ध लड़ने देवालयों से चले जाते हैं। वे सायर के दिन वापस अपने देवालयों में आ जाते हैं। इस दिन ग्रामीण क्षेत्रों के देवालयों में देवी-देवता के गूर देव खेल के माध्यम से लोगों को देव-डायन युद्ध का हाल बताते हैं और यह भी बताते हैं कि इसमें किस पक्ष की विजय हुई है। वहीं बरसात के मौसम में किस घर के प्राणी पर बुरी आत्माओं का साया पड़ा है। देवता का गूर इसके उपचार के बारे में भी बताता है। सायर के दिन ही नव दुल्हनें मायके से ससुराल लौट आती हैं। ऐसी मान्यता है कि भादों महीने के दौरान विवाह के पहले साल दुल्हन सास का मुंह नहीं देखती है। ऐसे में वह एक महीने के लिए अपने मायके चली जाती है।
सैर मनाने का तरीका हर क्षेत्र में अलग-अलग है। जहां एक तरफ कुल्लू, मंडी,कांगड़ा आदि क्षेत्रों में सैर एक पारिवारिक त्यौहार के रूप में मनाई जाती है वहीं शिमला और सोलन में इसे सामुहिक तौर पर मनाया जाता है।
शिमला और सोलन में सैर सामुहिक रूप से मनाई जाती है। इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं और लोग इनमें उत्साह से शामिल होते हैं। ढोल-नगाड़े बजाए जाते हैं और अन्य लोकगीतों और लोकनृत्यों का आयोजन किया जाता है। पहले शिमला के मशोबरा और सोलन के अर्की में “सांडों का युद्घ” कराया जाता था लेकिन अब यह पूरी तरह से बैन हो चूका है। । यह लगभग स्पेन, पुर्तगाल और लैटिन अमेरिका में होने वाले युद्घ की तरह ही होते हैं। लोग मेलों में बर्तन, कपड़े खरीदते हैं। लोग अपने आस-पड़ोसियों और रिश्तेदारों को मिठाई और अखरोट बांटते हैं। घरों में अनेकों पकवान भी बनते हैं। सोलन के अर्की में सायर का जिला स्तरीय मेला होता है